जलवायु परिवर्तन : पेरिस समझौता प्रभावी
बहुप्रतिक्षित पेरिस अंतरास्ट्रीय जलवायु समझौता लागू हो गया है इस
समझौते के लागू हो जाने से पृथ्वी के बढ़ते तापमान को रोकने कोलेकर विभिन्न देशों
पर ग्रीन हाउस गैसों (CO2, CH4, N2O, HFCs, PFCs and SF6) के उत्सर्जन में कमी
को लेकर दबाव बनेगा।
जलवायु परिवर्तन - वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड,कार्बनमोनोऑक्साइड(2CO) क्लोरोफ्लोरोकार्बन
आदि गैसों की मात्रा में वृद्धि से पृथ्वी के वायुमंडल के तापक्रम में वृद्धि को
जलवायु परिवर्तन कहा जाता है।
global warming |
पेरिस समझौता -
पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान हुए समझौते को पेरिस समझौते की संज्ञा दी गई। पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों (ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी और इसकी लागत के वित्तीय प्रबंधन) से निपटने के लिए ‘यूएनएफसीसीसी के सदस्यों’ (Parties of UNFCCC) द्वारा किया गया समझौता है।
पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान हुए समझौते को पेरिस समझौते की संज्ञा दी गई। पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों (ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी और इसकी लागत के वित्तीय प्रबंधन) से निपटने के लिए ‘यूएनएफसीसीसी के सदस्यों’ (Parties of UNFCCC) द्वारा किया गया समझौता है।
इस समझौते के अनुसार, 21वीं सदी के औसत तापमान स्तर में 2°C
से अधिक की वृद्धि
नहीं होने दी जाएगी व प्रयास यह होगा कि वैश्विक औसत तापमान में
1.5°c से काम की वृद्धि हो।
इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निम्न रणनीतिक बिंदु तय किए गए हैं-----
- · उपशमन (Mitigation)
- · सहयोग (help and Support)
- · पारदर्शी प्रणाली एवं वैश्विक सर्वेक्षण (A Transparent System and Global Stock take)
- · अनुकूलन (Adaptation)
- · हानि एवं क्षति (Loss and Damage)
पारदर्शी प्रणाली एवं वैश्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य
स्वेच्छा से अपने वर्तमान कार्बन-उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य निर्धारित करेंगे।इसे
लक्षित राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined
Contributions) कहा गया
है।सदस्यों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति एवं प्रगति की समीक्षा तथा
जलवायु कार्यवाही के लेखांकन हेतु एक पारदर्शी वैश्विक सर्वेक्षण प्रणाली का विकास
किया जाएगा जो वर्ष 2023 से प्रत्येक पांच वर्ष पर समीक्षा करेगा। हानि
एवं क्षति और सहयोग के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन के कारण हानि उठाने वाले देशों के
पुनरूत्थान एवं इसके दुष्प्रभावों से निपटने में सक्षम बनाने हेतु वित्तीय सहायता
का प्रावधान किया जाएगा। विकासशील देशों को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का सहयोग
प्रदान किया जाएगा।
समझौते से संबंधित महत्वपूर्ण तिथियां:-
12 दिसंबर, 2015 -- समझौते को यूएनएफसीसीसी(UNFCCC) द्वारा ग्रहण किया
गया।
22 अप्रैल, 2016 - 21 अप्रैल, 2017 ----- हस्ताक्षर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र
संघ के मुख्यालय न्यूयॉर्क में रखा गया
22 अप्रैल, 2016 ------
मालदीव, मार्शल द्वीप,
नौरू, तुवालू, सोमालिया और पोलैंड
ने समर्थन दिया।
2 अक्टूबर, 2016 ------
भारत ने समझौते को
अनुमति प्रदान की।
5 अक्टूबर, 2016 ----- समर्थन देने वाले
प्रमुख राष्ट्र कनाडा, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, नेपाल, जर्मनी आदि हैं।
पेरिस समझौते के अनुसार, यह समझौता उस तिथि के 30 दिन बाद लागू होगा, जब यूएनएफसीसीसी के कम-से-कम 55 ऐसे सदस्य इसका
समर्थन कर दें, जिनकी वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 55 प्रतिशत की हिस्सेदारी हो।पेरिस समझौता 4
नवंबर, 2016 से लागू होगया। वर्ष
2018 से सभीपक्ष
पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों की प्रगति और लक्षित राष्ट्रीयअंशदान(NDC)
की तैयारी को सूचित
करने के संबंध में सामूहिक प्रयासों की समीक्षा करेंगे समझौते की
पृष्ठभूमि:-
पृथ्वी की संरक्षा का प्रथम सामूहिक प्रयास स्टॉकहोम,
स्वीडन में जून,
1972 में आयोजित ‘मानव पर्यावरण
सम्मेलन’ (Conference of Human Environment) को माना जाता है।स्टॉकहोम सम्मेलन के 20
वर्षों बाद ब्राजील
के रियोडीजेनेरियो में 1992 में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में ‘पृथ्वी सम्मेलन’ (Earth Summit) का आयोजन किया गया। पृथ्वी
सम्मेलन में एक ही धरती के ‘साझा भविष्य’ की अवधारणा को पहचान मिली और ग्रीन हाउस
गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को वैश्विक तापमान वृद्धि, जलवायुपरिवर्तन एवं समुद्र
के जलस्तर में वृद्धि केलिए उत्तरदायी मानागया।
इसके 5वर्ष बाद जापान के क्योटो शहर में दिसंबर, 1997
में आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में
वैश्विक तापन के लिए उत्तरदायी ग्रीन हाउस गैसों (CO2, N2O, HFCs, CH4,PFCs
and SF6) के
उत्सर्जन में वर्ष1990 के स्तरसे 5 प्रतिशत की कटौती पर आम
सहमति बनी।क्योटो प्रोटोकॉल एनेक्जर-I (विकसित) राष्ट्रों को कानूनी बंधन के
दायरे में लाता है जबकि एनेक्जर-II (विकासशील) राष्ट्रों को किसीभी कानूनी
बंधन से उन्मुक्ति प्रदान करता है।16 फरवरी, 2005 से क्योटो प्रोटोकॉल 141 देशों में लागू हुआ
जो वर्ष 2012 में समाप्त होगया।२०१२ में रियो +२० सम्मलेन में ग्रीन इकॉनमी को अधिक
महत्व दिया गया इस।सम्मलेन में पर्यावरण को स्वस्छ रखते हुए सतत विकास पर बल दिया
गया।
क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि समाप्त होजाने के पश्चात जलवायु परिवर्तन की
समस्या को सामूहिक जिम्मेदारी मानते हुए सभी राष्ट्रों को कानूनीबंधन के दायरेमें
लाने के उद्देश्य से 7-11 दिसंबर, 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में CoP-21
सम्मेलन आयोजित किया
गया।इसके दौरान बनी सहमतियों के आधार पर पेरिससमझौता, अस्तित्व में आया।पेरिस समझौता वर्ष2020
के बाद की जलवायु
कार्यवाहियों सेसंबंधित है।इसे वर्ष २०२० तक सभी सदस्य देशो द्वारा अंगीकृत किया
जाना अनिवार्य होगा। इससे पूर्वतक विकसितराष्ट्र क्योटो प्रोटोकॉल का पालन करेंगे।
7-18 नवंबर, 2016 को मोरक्को में CoP-22, CMP-12 और CMA-1 की बैठक हुई।इस सम्मेलन में सभीपक्षों को मार्च
2017 तक पेरिस
समझौते के प्रशासन, संस्थागत व्यवस्था और सुरक्षाउपायों पर अपने विचार देने के लिए कहा
गया है।
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